kavita
जब भी कभी कोई भारतीय लड़की की शादी होती
है ,तो उसको जो नियम सिखाये जाते है ,असल में वो उसकी कैद का फरमान होता है। उसे पता है कि परम्परा के नाम पर उसे अपने अंदर की लड़की को मारना होगा। उसकी आत्मा से यह आवाज आती होगी।
क्या कोई बहु इंसान नहीं होती ,वो आसमान में उड़ नहीं सकती ?
क्या किसी लड़की को बहु बनने के लिए अपने वजूद को खत्म करना जरूरी है ?
क्या यह इंसाफ हे ?
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दुल्हन की आवाज
मुझे पता है ,अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
मेरे अंदर की लड़की को जाना पड़ेगा।
मुझे अब नजरें झुकानी पड़ेंगी।
कोई सपना कोई वादा अब भूल जाना पड़ेगा।
मुझे अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
कभी चंचलता जो जान थी।
म वह गुस्सा जो पहचान थी मेरी।
अब उन्हें पोटली बांधकर नदी में डूबाना पड़ेगा।
अब मुझे घुंघट उठाना पड़ेगा।
सखी परिवार की तरह आंखों से बिछड़ते आंसू।
इंतजार करता गली के बाहर वह लड़का।
भूलना नहीं अब सब मिटाना पड़ेगा ,
मुझे अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
वक़्त वक़्त की बात
ज़िंदगी में प्यार की रुला देने वाली कविता
यह वक़्त वक़्त की बात है
कभी तू साथ थी मेरे
आज तेरी याद साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है ,
कभी बाहो में था
आज कोई और तेरे साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है।
कभी चूमा था तुने गालो को मेरे
हंस के ,शर्मा के ,घबरा के
आज नज़रे झुका के चलते हो
यानी मेरी यादे आज भी तेरे साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है।
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