बेटी पर कविता वह रात को फिर जग गई।

बेटी पर कविताबेटी पर कविता 

वह रात को फिर जग गई। 

बड़े ही विश्वास से, बड़ी ही आस से ,

 छोटे से हाथ से ,मेरी उंगलियों को पकड़ा ,

और मेरे गले लग गई ,फिर रात हो जग गई ,

  हर डर को हरा के , हर हार को भुलाकर ,

वो  सो गई ,रात भर सपनों में हो गई ,

मैं रात भर उसको ताकता रहा ,

रात भर मुस्कुराता रहा ,  रात भर जागता रहा ,

सपने में कभी रोई  और कभी हंस गई ,

वह फिर रात को जग गई। 




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