तेरी गलिया teri galliya
तेरी गलियों को छोड़कर ,कहां जाऊंगा।
मैं फिर वापस ,लौट आऊंगा।
मेरी दुनिया, तेरी घर की दीवारों तक है।
मैं अपनी दुनिया छोड़कर कहां जाऊंगा।
तेरी गलिया teri galliya
तेरी गलियों को छोड़कर ,कहां जाऊंगा।
मैं फिर वापस ,लौट आऊंगा।
मेरी दुनिया, तेरी घर की दीवारों तक है।
मैं अपनी दुनिया छोड़कर कहां जाऊंगा।
समय पर मोटिवेशनल कविता
समय अपना सारथी।
चल रहे है हम अकेले समय अपना सारथी
जहां चाहे मोड़ देता ,जब चाहे छोड़ देता ,
समय अपना महाबली,समय अपना सारथी।
हमने की है लाख कोशिश ज़िंदगी को मनाने की ,
टूटे हुए चंद धागे ,फिर से बनाने की ,
पर सुनता ही नहीं यह महारथी ,
समय अपना सारथी।
समय के रथ पर सवार हु और ज़िंदगी का सफर ,
हाथ बंधे है मेरे ,समय का यह चक्र
समय हर पल कर रहा है दिल्लगी
समय अपना सारथी ,हार जाने पर भी मुझको
छोड़ता है क्यों नहीं ,मुझ से द्रेष है तो ,
मुख मोड़ता है क्यों नहीं ,
मुझसे और क्या मांगता है यह रथी ,
समय अपना सारथी।
मुझे तु अपना सपना ना दे,
सपना टूटने से डरता हूं मैं ,
कहीं कोई सपना अधूरा रह जाए,
इसलिए रातों को जगता हूं मैं ,
तेरे सपने कांच की तरह नाजुक हैं ,
संभाल लो इनको छुपा लो इन्हे ,
कहीं आंखों से छूट ना जाए ,
इसलिए मैं रातों को करवटें बदलता हूं मैं ,
मुझे तू अपना सपना ना दे।
तुझे याद करता हूं ,
मैं अपना घर कैसे बर्बाद करता हूं ,
तू नहीं तेरी यादों से ,
मैं तो दीवारों से भी बात करता हूं ,
कैसे-कैसे सपने और कैसी कैसी हकीकत ,
मैं रातों को लो सा जलता हूं ,
फिर भी तेरी यादों को बात करता हूं ,
तुझे बुलाकर मैं याद करता हूं।
आंखों को बरसने दो यादों से आज मुलाकात है ,
मैं फिर से बच्चा बन जाऊंगा ,
देखना दौड़कर क्षितिज को छू आऊगा ,
मैं फिर से बच्चा बन जाऊंगा .
कागज की नाव से सड़कों पर ,
बरसात की नदी पार कर जाऊंगा ,
मैं फिर से बच्चा बन जाऊंगा .
अभी जिंदगी के झमेले लड़ रहा हूं ,अभी अकेले ,
मैं जीत कर फिर वापस आऊंगा ,
मैं फिर से बच्चा बन जाऊंगा .
पतंग बना चांद पर जाऊंगा ,
पेड़ के नीचे बैठी बुढ़िया ,
उसका चरखा ले आऊंगा ,
मैं फिर से बच्चा बन जाऊंगा।
एक दिन फिजा में समा जाऊंगा ,
इन्हीं पेड़ों में जल जाऊंगा,
मैं फिर से वापस फिर आऊंगा ,
फिर से बच्चा बन जाऊंगा।
बेटी पर कविता बड़े ही विश्वास से, बड़ी ही आस से ,
छोटे से हाथ से ,मेरी उंगलियों को पकड़ा ,
और मेरे गले लग गई ,फिर रात हो जग गई ,
हर डर को हरा के , हर हार को भुलाकर ,
वो सो गई ,रात भर सपनों में हो गई ,
मैं रात भर उसको ताकता रहा ,
रात भर मुस्कुराता रहा , रात भर जागता रहा ,
सपने में कभी रोई और कभी हंस गई ,
वह फिर रात को जग गई।
यह तारे से चमकते दिए ,
मांग के सिंगार हैं,तेरे लिए
यह फूटते पटाखे ,
हंसी की फुहार हैं, तेरे लिए
दीपावली की मिठाई,
खुशी बहार है ,तेरे लिए
हजारों ख्वाहिशें,हजारों मंजिलें ,
दिवाली पर इंतजार में है ,तेरे लिए
बस तू ही, तू तू ही तू ,
तो है मेरे लिए, मेरे लिए।
दीवाली त्यौहार श्री राम जी के अयोध्या वापस आने पर मनाया जाता है जब हर अयोध्यावासी ने यही तो कहा था।
दीवाली की कविता
चलो राम जी का पथ जगमगा दो ,
कुछ दिए इस पथ पर लगा दो ,
भूल ना जाए वह घर मेरा ,
कुछ दिए मेरे दरवाजे पर लगा दो ,
बड़ा बहुत बड़ा समय विरह का था ,
आज राम जी से समय मिलवा दो ,
शबरी सा रस, हनुमान सा भाग्य ,
मुझे भी दिलवा दो ,कुछ दिए जला दो।
दिवाली से सीखो ,
अंधेरे को हराना,
दिए से सीखो ,
कर्तव्य में स्वयं जल जाना ,
मिठाई से सीखो ,
मुंह में मिठास लाना ,
बस भूल न जाना ,
दिवाली से कहना ,
तुम रोज आना ,तुम रोज आना।
जीवन पर शानदार कविता
पानी में पानी सा मिल जाऊंगा ,
मैं फिजा में हवा सा बह जाऊंगा,
मैं शरीर नहीं कुदरत हूं...
कुदरत सा हो जाऊंगा ...
अभी बहुत से सपने सजे हैं, मेरे अंदर
मेरे अंदर बहुत सी शिकायत पली है ,
चांद पाने की ख्वाहिश छिपी है मेरे अंदर ,
मेरे अंदर मै खुद ही खो जाऊंगा ...
मैं मिट्टी में मिट्टी सा बन जाऊंगा।
जब भी कभी कोई भारतीय लड़की की शादी होती
क्या किसी लड़की को बहु बनने के लिए अपने वजूद को खत्म करना जरूरी है ?
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मुझे पता है ,अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
मेरे अंदर की लड़की को जाना पड़ेगा।
मुझे अब नजरें झुकानी पड़ेंगी।
कोई सपना कोई वादा अब भूल जाना पड़ेगा।
मुझे अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
कभी चंचलता जो जान थी।
म वह गुस्सा जो पहचान थी मेरी।
अब उन्हें पोटली बांधकर नदी में डूबाना पड़ेगा।
अब मुझे घुंघट उठाना पड़ेगा।
सखी परिवार की तरह आंखों से बिछड़ते आंसू।
इंतजार करता गली के बाहर वह लड़का।
भूलना नहीं अब सब मिटाना पड़ेगा ,
मुझे अब घुंघट उठाना पड़ेगा।
वक़्त वक़्त की बात
ज़िंदगी में प्यार की रुला देने वाली कविता
यह वक़्त वक़्त की बात है
कभी तू साथ थी मेरे
आज तेरी याद साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है ,
कभी बाहो में था
आज कोई और तेरे साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है।
कभी चूमा था तुने गालो को मेरे
हंस के ,शर्मा के ,घबरा के
आज नज़रे झुका के चलते हो
यानी मेरी यादे आज भी तेरे साथ है ,
यह वक़्त वक़्त की बात है।
zindagi aisi hi hai ,
jeene nahin deti aur Marne bhi nahin deti .
ek pal nirasha ho to agale pal aas ka Tara timtima deti hai,
Khush hote hain to dukhon ka pahad thama deti hai ,
jindagi aisi hi hai ,
tere hi niyamon per chalna Sikh liya ,
ab shikayat nahin jina Sikh liya ,
Na tu mujhe jitati Na harne deti,
jindagi aisi hi hai ,
ashkon ko jameen per girne se pahle ,
wo mujhe Hansa deti per jab bhi hansta Hun to fir rula deti ,
jindagi aisi hi hai
जिंदगी ऐसी ही है ,
जीने नहीं देती और मरने भी नहीं देती ,
एक पल निराशा हो तो अगले पल आस का तारा टीम टीमा देती है।
खुश होते हैं तो दुखों का पहाड़ थमा देती।
जिंदगी ऐसी ही है ,
तेरे ही नियमों पर चलना सीख लिया ,
अब शिकायत नहीं, जीना सीख लिया।
ना तु जीतने देती ,ना हारने देती।
अश्कों को जमीन पर गिरने से पहले वो मुझे हंसा देती।
पर जब भी हंसता हूं तो फिर रुला देती।
जिंदगी ऐसी है जीने नहीं देती।
जन गण मन हमारे देश का राष्ट्रीय गान है। जिसे 27 दिसंबर 1911 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन कोलकाता में गाया गया। इसके रचीयता श्री रविंद्र नाथ टैगोर थे ,जिन्होंने बांग्ला में इस गीत को लिखा था और तत्कालीन बांग्ला मैगजीन में छपा था।
इसमें कुछ बदलाव भी किया गया ,मूल रूप से यह बंगाली गान था। शुरुआत में यह 20 सेकंड का गीत था। बाद में इसे 52 सेकंड का गीत बनाया गया। यानी हमारे राष्ट्रगान को गाने में 52 सेकेड ही लगते हैं।
यह गीत देश की पहचान है। हमें इस गीत का सम्मान करते हुए, यदि यह कहीं बज रहा है या गाया जा रहा है ,तो सावधान खड़े होना चाहिए। इस तरह हम केवल एक गीत को नहीं अपने देश को सम्मान देते हैं यह राष्ट्रीय पहचान हैं। आप इसे जरूर गुनगुनाए, आप इस पर गर्व करेंगे।
जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा,
द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा,
उच्छल जलधि तरंग
तब शुभ नामे जागे,
तब शुभ आशिष मांगे
गाहे तब जय गाथा।
भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥
by Rabindranath Tagore
Lyrics by: Rabindranath Tagore
Raga: Alhiya Bilawal
Written on: December 11, 1911
First sung on: December 27, 1911
Jana-gana-mana-adhinayaka, jaya he
Bharata-bhagya-vidhata.
Punjab-Sindh-Gujarat-Maratha
Dravida-Utkala-Banga
Vindhya-Himachala-Yamuna-Ganga
Uchchala-Jaladhi-taranga.
Tava shubha name jage,
Tava shubha asisa mage,
Gahe tava jaya gatha,
Jana-gana-mangala-dayaka jaya he
Bharata-bhagya-vidhata.
Jaya he, jaya he, jaya he, Jaya jaya jaya, jaya he!